CHITRANJALI NATIONAL LEVEL PHOTOGRAPHY FESTIVAL, CHITRANJALI PHOTOGRAPHY COMPETITION JABALPUR

Special Articles By Rajendra Pratap Singh

हर दिल अज़ीज़ छायाकार अग्रज महेन्द्र चौधरी ....

यह आम धारणा है कि रचनाकार और कलाकार धुन के पक्के होते हैं। रचनाकार अपनी कृति, और कलाकार को अपनी कला से इस हद तक लगाव होता है कि वह अपनी • महत्वपूर्ण जिम्मेवारियों के प्रति प्रायः लापरवाह हो जाता है। लोग उसकी रचना, कृति को देखे, परखे और गुणदोष की मीमांसा कर सराहें, प्रतिक्रियाएँ दें, यही उसकी भूख होती है। छायाकार, चित्रकार महेन्द्र चौधरी ऐसे ही धुन के पक्के कलाकार थे। उम्र में बड़ा हो या छोटा हो, एक बार यदि महेन्द्र भाई से पहचान बन गई तो उनसे उनका मिलना जुलना ऐसा चिरपरिचित अंदाज में जारी रहता था, जैसे उक्त व्यक्ति उनका सर्वाधिक नजदीकी हो। चाहे मंत्री स्तर का नेता हो या कलेक्टर एसपी अथवा उससे उच्च दर्जे का प्रशासनिक अधिकारी हो, निर्लिप्त भाव से मिलना और पिपरमेंट युक्त मीठी गोली भरी शीशी निकालकर भेंट कर रसास्वादन कराना वे मुलाकात का पहला हिस्सा मानते थे। अत्यंत सहज, मृदुभाषी, विनम्र तथा स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी प्रतिभावान छायाकार महेन्द्र चौधरी उस पीढ़ी के फोटो पत्रकार थे, जब समाचारों से जुड़े संदर्भों और समारोहों तथा घटनाओं से संबंधित खबरों पर आधारित छायाचित्रों का समाचार पत्रों के प्रकाशन का था। तब फोटो पत्रकारों द्वारा तैयार किये गये छायाचित्रों के ब्लाक बनाने पड़ते थे और ब्लाक तैयार होने में कम से कम ४८ घंटे अथवा उससे अधिक समय लगता था। इस कारण हर खबर में उससे आधारित छायाचित्र नहीं लग पाते थे। राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेताओं के छायाचित्रों के ब्लाक बना कर रखे होते थे, जिनका उपयोग उनसे संबंधित समाचारों के प्रकाशन में करते रहने का चलन था। यह समझना असहज नहीं होगा कि उन दिनों फोटो पत्रकारिता से जुड़े रहना कितना दुष्कर तथा चुनौती भरा था। व्यक्ति के जीवनयापन की जिम्मेवारी और आश्रित परिजनों की परवरिश का बोझ उठाना और फोटो पत्रकारिता जैसे व्यवसाय से जुड़े रहना कठिनाईपूर्ण जिन्दगी को आमंत्रण देने जैसा था। ऐसे समय में भी भाई महेन्द्र चौधरी डिगे नहीं। वे अपनी धुन के वशीभूत रहकर इस चुनौती को हँसते मुस्कुराते निभाने में कामयाब होते रहे। जब ऑफसेट प्रिंटिंग और कम्प्यूटर प्रणाली विकसित हो गई, तब भी वे जीवन पर्यन्त फोटो पत्रकारिता के धर्म का निर्वाह करते रहे। दोनों समय के दौर में फर्क होने के बावजूद महेन्द्र चौधरी जी के हावभाव में और जीवन शैली में कभी भी बदलाव नहीं दिखा।

राजेन्द्र प्रताप सिंह